लकीरों में नहीं कर्म से, सींच अपने भाग्य का मंजर I लकीरों में नहीं कर्म से, सींच अपने भाग्य का मंजर I
वीरान होती बस्ती दर बस्ती हो गई जीवन कितनी सस्ती। वीरान होती बस्ती दर बस्ती हो गई जीवन कितनी सस्ती।
एक बालक की जिज्ञासा है जिसमें वह अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए अपने अबोध मन को समझाने की कोशिश करता है... एक बालक की जिज्ञासा है जिसमें वह अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए अपने अबोध मन को समझ...
अंकल थे ना, देदी पप्पी। इसमें उन्होंने ले ली मेरी पप्पी ।। अंकल थे ना, देदी पप्पी। इसमें उन्होंने ले ली मेरी पप्पी ।।
जो जैसा होता है उसको वही नज़र आता है ! जो जैसा होता है उसको वही नज़र आता है !
चेहरे की तस्वीर ने ये बात बताई है । चेहरे की तस्वीर ने ये बात बताई है ।